नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने महासचिव को मौजूदा और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों में जांच तंत्र से संबंधित एक मामले में जवाब देने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने महासचिव को इस मुद्दे पर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया क्योंकि वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि महासचिव को अभी एक हलफनामा दाखिल करना है। जयसिंह ने यह भी कहा कि वह इस तरह की शिकायतों से निपटने के लिए न्यायपालिका के भीतर एक तंत्र विकसित करने पर नवीनतम घटनाओं से संबंधित कुछ अतिरिक्त सामग्री दाखिल करना चाहेंगी। शीर्ष अदालत ने अब मामले की सुनवाई के लिए 15 नवंबर की तारीख तय की है।
शीर्ष अदालत 2014 में एक ला इंटर्न द्वारा सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। न्यायाधीश ने जनवरी 2014 मंह दिल्ली उच्च न्यायालय से मीडिया के खिलाफ पीड़ित द्वारा लगाए गए “आरोपों को उजागर करने वाली किसी भी सामग्री” को प्रकाशित करने से रोक दिया था। न्यायाधीश ने दावों को “निराधार, धोखाधड़ी और प्रेरित” के रूप में खारिज कर दिया था।
जनवरी 2014 में, शीर्ष अदालत ने सुनवाई के लिए याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि “आज की तारीख में, सभी न्यायिक अधिकारियों, मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच करने के लिए कोई तंत्र नहीं है, चाहे वह पद धारण करते हों या नहीं” और इस सीमित पहलू पर नोटिस जारी करने पर सहमत हुए।
इसके साथ ही बेंच ने बार काउंसिल आफ इंडिया (BCI) को उक्त कार्यवाही में एक पक्ष बनाने के वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और इसे यौन उत्पीड़न के संबंध में नियम बनाने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कहा कि यदि वह चाहती हैं कि बार काउंसिल आफ इंडिया द्वारा दिशानिर्देश तैयार किए जाएं तो वह इस संबंध में एक अलग याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं।
सुप्रीम कोर्ट 15 नवंबर को जजों के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई करेगा
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